तुम्हारी छवि

अनगिनत बार इस छवि को निहारती हूँ
कुछ पूरानी यादों में डूब जाती हूँ
तुम्हें शायद अब याद हो के ना हो
हमने भी कभी फोनबुक का सफर
शुरू किया.. कुछ. यही या शायद यूंही
ऐसे ही छवि के साथ..
भूल गई थी अपने स्याह अतीत को
रंग गई तुम्हारे ही रंग में
जिने लगी थी तुम्हारे साथ
तुम्हारे नफ़रतों ने
मेरी मोहब्बत को
और गहरा कर दिया
तुम तो बिना आहट
छुड़ा गये हाथ
बस इतनी सी
दुआ कर दे
छुट जाये अब  इस
जिंदगी से साथ ♥

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